रंगभूमि अध्याय 20
मि. क्लार्क ने मोटर से उतरते ही अरदली को हुक्म दिया-डिप्टी साहब को फौरन हमारा सलाम दो। नाजिर, अहलमद और अन्य कर्मचारियों को भी तलब किया गया। सब-के-सब घबराए-यह आज असमय क्यों तलबी हुई, कोई गलती तो नहीं पकड़ी गई? किसी ने रिश्वत की शिकायत तो नहीं कर दी? बेचारों के हाथ-पाँव फूल गए।
डिप्टी साहब बिगड़े-मैं कोई साहब का जाती नौकर नहीं हूँ कि जब चाहा, तलब कर लिया। कचहरी के समय के भीतर जितनी बार चाहें,तलब करें; लेकिन यह कौन-सी बात है कि जब जी में आया, सलाम भेज दिया। इरादा किया, न चलूँ; पर इतनी हिम्मत कहाँ कि साफ-साफ इनकार कर दें। बीमारी का बहाना करना चाहा; मगर अरदली ने कहा-हुजूर, इस वक्त न चलेंगे, तो साहब बहुत नाराज होंगे। कोई बहुत जरूरी काम है, तभी तो मोटर से उतरते ही आपको सलाम दिया।
आखिर डिप्टी साहब को मजबूर होकर आना पड़ा। छोटे अमलों ने जरा भी चूँ न की, अरदली की सूरत देखते ही हुक्का छोड़ा, चुपके से कपड़े पहने, बच्चों को दिलासा दिया और हाकिम के हुक्म को अकाल-मृत्यु समझते हुए, गिरते-पड़ते बँगले पर आ पहुँचे। साहब के सामने आते ही डिप्टी साहब का सारा गुस्सा उड़ गया, इशारों पर दौड़ने लगे। मि. क्लार्क ने सूरदास की जमीन की मिसिल मँगवाई, उसे बड़े गौर से पढ़वाकर सुना, तब डिप्टी साहब से राजा महेंद्रकुमार के नाम एक परवाना लिखवाया, जिसका आशय यह था-पाँड़ेपुर में सिगरेट के कारखाने के लिए जो जमीन ली गई, वह उस धारा के उद्देश्य के विरुध्द है, इसलिए मैं अपनी अनुमति वापस लेता हूँ। मुझे इस विषय में धोखा दिया गया है और एक व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कानून का दुरुपयोग किया गया है।
डिप्टी साहब ने दबी जबान से शंका की-हुजूर, अब आपको वह हुक्म मंसूख करने का मजाज नहीं; क्योंकि सरकार ने उसका समर्थन कर दिया है।
मिस्टर क्लार्क ने कठोर स्वर में कहा-हमीं सरकार हैं, हमने वह कानून बनाया है, हमको सब अख्तियार है। आप अभी राजा साहब को परवाना लिख दें, कल लोकल गवर्नमेंट को उसकी नकल भेज दीजिएगा। जिले के मालिक हम हैं, सूबे की सरकार नहीं। यहाँ बलवा हो जाएगा,तो हमको इंतजाम करना पड़ेगा, सूबे की सरकार यहाँ न आएगी।
अमले थर्रा उठे, डिप्टी साहब को कोसने लगे-यह क्यों बीच में बोलते हैं। अंगरेज है, कहीं गुस्से में आकर मार बैठे, तो उसका क्या ठिकाना। जिले का बादशाह है, जो चाहे, करे, अपने से क्या मतलब।
डिप्टी साहब की छाती भी धड़कने लगी, फिर जबान न खुली। परवाना तैयार हो गया, साहब ने उस पर हस्ताक्षर किया, उसी वक्त एक अरदली राजा साहब के पास परवाना लेकर पहुँचा। डिप्टी साहब वहाँ से उठे, तो मि. जॉन सेवक को इस हुक्म की सूचना दे दी।
जॉन सेवक भोजन कर रहे थे। यह समाचार सुना, तो भूख गायब हो गई। बोले-यह मि. क्लार्क को क्या सूझी?
मिसेज़ सेवक ने सोफी की ओर तीव्र दृष्टि से देखकर पूछा-तूने इनकार तो नहीं कर दिया? जरूर कुछ गोलमाल किया है।
सोफ़िया ने सिर झुकाकर कहा-बस, आपका गुस्सा मुझी पर रहता है, जो कुछ करती हूँ, मैं ही करती हूँ।
ईश्वर सेवक-प्रभु मसीह, इस गुनहगार को अपने दामन में छिपा। मैं आखिर तक मना करता रहा कि बुङ्ढे की जमीन मत लो; मगर कौन सुनता है। दिल में कहते होंगे, यह तो सठिया गया है, पर यहाँ दुनिया देखे हुए हैं। राजा डरकर क्लार्क के पास आया होगा।
प्रभु सेवक-मेरी भी यही विचार है। राजा साहब ने स्वयं मिस्टर क्लार्क से कहा होगा। आजकल उनका शहर से निकलना मुश्किल हो रहा है। अंधो ने सारे शहर में हलचल मचा दी है।
जॉन सेवक-मैं तो सोच रहा था, कल शांति-रक्षा के लिए पुलिस के जवान माँगूँगा, इधर यह गुल खिला! कुछ बुध्दि काम नहीं करती कि क्या बात हो गई।
प्रभु सेवक-मैं तो समझता हूँ, हमारे लिए इस जमीन को छोड़ देना ही बेहतर होगा। आज सूरदास न पहुँच जाता, तो गोदाम की कुशल न थी, हजारों रुपये का सामान खराब हो जाता। यह उपद्रव शांत होनेवाला नहीं है।
जॉन सेवक ने उनकी हँसी उड़ाते हुए कहा-हाँ, बहुत अच्छी बात है, हम सब मिलकर उस अंधो के पास चलें और उसके पैरों पर सिर झुकाएँ। आज उसके डर से जमीन छोड़ दूँ, कल चमड़े की आढ़त तोड़ दूँ, परसों यह बँगला छोड़ दूँ और इसके बाद मुँह छिपाकर यहाँ से कहीं चला जाऊँ। क्यों, यही सलाह है न? फिर शांति-ही-शांति है, न किसी से लड़ाई, न किसी से झगड़ा। यह सलाह तुम्हें मुबारक रहे। संसार शांति भूमि नहीं, समर भूमि है। यहाँ वीरों और पुरुषार्थियों की विजय होती है, निर्बल और कायर मारे जाते हैं। मि. क्लार्क और राजा महेंद्रकुमार की हस्ती ही क्या है, सारी सरकार भी अब इस जमीन को मेरे हाथों से नहीं छीन सकती। मैं सारे शहर में हलचल मचा दूँगा, सारे हिंदुस्तान को हिला डालूँगा। अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता की यह मिसाल देश के सभी पत्रों में उध्दृत की जाएगी, कौंसिलों और सभाओं में एक नहीं, सहस्र-सहस्र कंठों से घोषित की जाएगी और उसकी प्रतिधवनि अंगरेजी पार्लियामेंट तक में पहुँचेगी। यह स्वजातीय उद्योग और व्यवसाय का प्रश्न है। इस विषय में समस्त भारत के रोजगारी, क्या हिंदुस्तानी और क्या अंगरेज, मेरे सहायक होंगे; और गवर्नमेंट कोई इतनी निर्बुध्दि नहीं है कि वह व्यवसायियों की सम्मिलित धवनि पर कान बंद कर ले। यह व्यापार-राज्य का युग है। योरप में बड़े-बड़े शक्तिशाली साम्राज्य पूँजीपतियों के इशारों पर बनते-बिगड़ते हैं, किसी गवर्नमेंट का साहस नहीं कि उनकी इच्छा का विरोध करे। तुमने मुझे समझा क्या है, वह नरम चारा नहीं हूँ, जिसे क्लार्क और महेंद्र खा जाएँगे!